जय वीर दुर्गादास
मध्यकालीन भारत मे इस्लामीकरण की आंधी को रोकने के लिए कितना संघर्ष किया राठौड़ कुल के वीर दुर्गादास राठौड़ जोधपुर ने
इसका साक्ष्य तत्कालीन कवि द्वारा लिखा ये दोहाः
आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले उपर वास।
सैल अणि सूं सैकतो बाटी दुर्गादास।
दोहे का भावार्थ जानने पर रुंह कांप जाती है कि कितना कठीन संघर्ष किया ओर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि धन्य है मारवाड़ की धरा जहा ऐसे धर्म रक्षक ने जन्म लिया । एक बार एक जाट बंधु मेहरानगढ दुर्ग देखने गया ओर वहा के ताम झाम देखकर एक दोहा कहा जो झकझोर देने वाला हैः
ढबक ढबक ढौल बाजैं. दे दे ताल नगारा कीः
आसा घर दुर्गो नी होवतो , तो सूनन्त होती सारा की।।
कहनेक्षका तात्पर्य आज आप ढौल नगारे बजाकर खुशियां मना रहे है आसकरण पुत्र दुर्गादास नही होता तो औरंगजेब की इस्लामिकरण की आंधी मे पुरा भारत मे इस्लाम होता उस वीर ने वो आंधी रोककर आपको हिन्दू रखा जो आज आप ढौल बजाकर अपन आप को धन् मान रहे है।
औरगं ने एक बार दुर्गादास से पुछा बोल तुझै क्या चाहिए जो चाहिए मांग मै तुझे देता हू विरोध छोड़ ः
वीरवर के मुख से निकला एक एक शब्द गौरवान्वित करने वाला हैः
खग वाल्हौ, वाल्हौ प्रभु,वाल्हौ मरूधरदेश।
साम धरम सदा वाल्हो , नित वाल्हौ नरेश
मुझे मेरा साम धरम यानी हिन्दू धर्म प्यारा है ,मुझे ये हिंदुस्तान प्यारा, मेरा आराध्य देव प्यारा , मेरा स्वामी भक्ति प्यारी ओर मेरा मारवाड़ नरेश प्यारा है धन्य राजस्थान की धरा जहा ऐसे राष्ट्र भक्त अवतरित हूवै जिनके लिऐ कवि को यह दोहा कहने के लिए विवश होना पड़ाः
मरै वट राखण वीरता , सूरा रण इक बार।
आंता बट दे जीवियां इण जग रा झूजांर।।। ... See more